J. Krishnamurti's Teachings Online in Indian Languages (Hindi, Punjabi, Gujarati, Marathi, Bengali, Sanskrit etc.)
जे. कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 को आन्ध्र प्रदेश के एक छोटे-से कस्बे मदनापल्ली में एक धर्मपरायण परिवार में हुआ था। किशोरकाल में उन्हें थियोसॉफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ. एनी बेसेंट द्वारा गोद ले लिया गया। कृष्णमूर्ति आगामी ‘विश्व-शिक्षक’ (‘वर्ल्ड टीचर’) होंगे, ऐसा श्रीमती बेसेंट और अन्य लोगों ने घोषित किया। थियोसॉफी के अनुयायी पहले ही किसी ‘विश्व-शिक्षक’ के आगमन की भविष्यवाणी कर चुके थे। कतिपय धर्मग्रन्थों में भी ऐसा वर्णित है कि मानवता के उद्धार के लिए समय-समय पर ‘विश्व-शिक्षक’ मनुष्य का रूप धारण करता है।
सन् 1922 में कृष्णमूर्ति किन्हीं गहरी आध्यात्मिक अनुभूतियों से होकर गुज़रे और उन्हें उस करुणा का स्पर्श हुआ--जैसा कि उन्होंने कहा--जो सारे दुःख-कष्टों को हर लेती है। इसके बाद आगे के साठ से भी अधिक वर्षों तक, जब तक कि 17 फरवरी 1986 को उनकी मृत्यु नहीं हो गयी, वे अनथक रूप से पूरी दुनिया का दौरा करते रहे--सार्वजनिक वार्ताएं तथा संवाद करते हुए, संभाषण और साक्षात्कार देते हुए, तथा लिखते और बोलते हुए। उन्होंने यह भूमिका सत्य के प्रेमी और एक मित्र के रूप में निभाई--गुरु के रूप में उन्होंने स्वयं को कभी नहीं रखा। उन्होंने जो भी कहा वह उनकी अंतर्दृष्टि का संप्रेषण था--वह महज़ किताबी या बौद्धिक ज्ञान पर आधारित नहीं था। उन्होंने दर्शनशास्त्र की किसी नई प्रणाली की व्याख्या नहीं की, बल्कि हमारी जो रोज़मर्रा की जिंदगी है उसी की ओर उन्होंने हमें सचेत किया—भ्रष्टाचार और हिंसा से भरे समाज की ओर, सुरक्षा और सुख की तलाश में भटकते मनुष्य की ओर, उसके भय, दुःख एवं संघर्ष की ओर। उन्होंने बड़ी बारीकी से मानव के मन की गुत्थियों को सुलझाया और इस बात की महत्ता की ओर संकेत किया कि हमारा दैनिक जीवन सच्चे अर्थों में ध्यान और धार्मिकता की गुणवत्ता से आलोकित होना चाहिए। उन्होंने एक ऐसे आमूलचूल और बुनियादी परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया जो एक नितांत नये मानस और नयी संस्कृति को जन्म दे सके।
कृष्णमूर्ति को पूरे विश्व में अब तक के सबसे महान धार्मिक शिक्षकों में से एक माना जाता है, लेकिन उन्होंने स्वयं को कभी किसी धर्म, संप्रदाय या देश विशेष से जुड़ा हुआ नहीं माना। उन्होंने स्वयं को कभी किसी राजनीतिक सोच या विचारधारा से नहीं जोड़ा। इसके विपरीत उनका कहना था कि ये चीज़ें मनुष्य-मनुष्य के बीच अलगाव पैदा करती हैं और अन्ततः संघर्ष और युद्ध का कारण बनती हैं। उन्होंने इस बात पर हमेशा ज़ोर दिया कि मनुष्य की चेतना और मानवजाति की चेतना अलग नहीं है, बल्कि हमारे भीतर पूरी मानव जाति, पूरा विश्व प्रतिबिंबित होता है। प्रकृति और परिवेश से मनुष्य के गहरे रिश्ते और एकत्व की उन्होंने बात की। इस प्रकार उनकी शिक्षा मानव निर्मित सारी दीवारों, धार्मिक विश्वासों, राष्ट्रीय बँटवारों, और सांप्रदायिक दृष्टिकोणों से परे जाने का संदेश देती है।
कृष्णमूर्ति के साहित्य में उनकी सार्वजनिक वार्ताएं, प्रश्नोत्तर, परिचर्चाएं, साक्षात्कार, निजी संवाद तथा नोटबुक-जर्नल आदि के रूप में उनका स्वयं का लेखन शामिल है। बहुत सारी पुस्तकों के रूप में मूल अंग्रेजी में प्रकाशन के साथ उनका विश्व की अधिकांश प्रमुख भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। इसके अतिरिक्त बिल्कुल प्रामाणिक और मूल रूप में उनकी शिक्षा ऑडियो और वीडियो टेपों के माध्यम से भी उपलब्ध है। उन्होंने अध्ययन केंद्रों (‘स्टडी सेन्टर’) की स्थापना भी की, जहां सत्यान्वेषी जाकर उनकी शिक्षाओं का गंभीरता से अध्ययन और स्व-अनुसंधान कर सकें। कृष्णमूर्ति ने भारत और विदेशों में विद्यालयों की भी स्थापना की जहां बच्चों को भय और प्रतिस्पर्धा से मुक्त वातावरण में खिलने और विकसित होने का अवसर मिल सके।
विश्व के महान सत्यान्वेषी के रूप में प्रतिष्ठित कृष्णमूर्ति ने अपना सारा जीवन मनुष्य को उसकी संस्कारबद्धता और उसके स्वातंत्र्य की संभावना के प्रति सचेत करने के लिए समर्पित किया। उन्होंने स्वयं को किसी भी देश या धर्म से जुड़ा हुआ नहीं माना--वे जहां भी जाते, कुछ माह से अधिक नहीं रुकते। ओहाय (कैलीफोर्निया), सानेन (स्विट्ज़रलैण्ड), ब्रॉकवुड पार्क (इंग्लैंड) और भारत के विभिन्न स्थानों में होने वाली वार्षिक वार्ताओं में हज़ारों की संख्या में अलग-अलग देशों, व्यवसायों और दृष्टियों से जुड़े लोगों का आना होता था। सारी समस्याओं के मूल तक पहुँचने और अपने मन-मस्तिष्क की गतिविधियों का बारीकी से अवलोकन करने का उनका उत्कटता से आग्रह होता। जीवन को उसकी संपूर्णता में देखने के लिए वे बारंबार श्रोताओं से कहते।
उनकी यात्राओं और वार्ताओं के प्रबंधन के लिए भारत, अमेरिका, इंग्लैंड और लातिन अमेरिका में कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन की स्थापना की गई। आज यही फाउण्डेशन विद्यालयों, स्टडी सेंटर (अध्ययन केन्द्रों) और रिट्रीट (अध्ययन अवकाशों) का संचालन कर रही हैं, और साथ ही कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं के प्रकाशन और संरक्षण का दायित्व भी निभा रही हैं।
‘कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन इण्डिया’ कृष्णमूर्ति की किताबों को मूल अंग्रेजी में और विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने का कार्य कर रहा है। फाउण्डेशन का प्रमुख सरोकार है कि कृष्णमूर्ति की शिक्षा को किसी भी रूप में विकृत न किया जाए और जितना अधिक संभव हो उन्हें लोगों को आसानी से उपलब्ध कराया जा सके।
The crisis is in human consciousness
History seems to be the story of man-made catastrophes, and these seem to occur regularly, repeatedly and unfailingly, always taking the world by shock and surprise, disproving all the predictions and promises of the pundits and experts, setting at naught the calculations of the intellect, defying logic and reason, and leaving human beings feeling baffled and helpless.
Thought Seeks Security
Thought is the very essence of security, and that is what the most bourgeois mind wants—security, security at every level! To bring about a total change of the human consciousness, thought must function at one level and must not function at another level.
विचार सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ चाहता है
विचार तो सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ का अपरिहारà¥à¤¯ लकà¥à¤·à¤£ है और पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨à¤µà¤¾à¤¦à¥€ मानसिकता वाले लोग यही चाहता है -- सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ और वह à¤à¥€ हरà¤à¤• सà¥à¤¤à¤° पर | मानव चेतना में संपूरà¥à¤£ परिवरà¥à¤¤à¤¨ लाने के लिठविचार à¤à¤• सà¥à¤¤à¤° पर अपना कारà¥à¤¯à¤•à¤²à¤¾à¤ª करे परंतॠअनà¥à¤¯ सà¥à¤¤à¤° पर नहीं |
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वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का सरà¥à¤µà¥‹à¤šà¥à¤š महतà¥à¤µ है, à¤à¤²à¥‡ ही समाज, धरà¥à¤® और सरकार इस तथà¥à¤¯ को मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ नहीं देते | आप अतà¥à¤¯à¤‚त महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आप यथारà¥à¤¥ की विसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿà¤• सरà¥à¤œà¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ को लाने वाले à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° साधन हैं | आप सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही वह वातावरण हैं जिसमें यथारà¥à¤¥ असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आ सकता है | लेकिन आप देख चà¥à¤•à¥‡ हैं कि सà¤à¥€ सरकारें, सà¤à¥€ संगठित धरà¥à¤® और समाज वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के महतà¥à¤µ पर ज़ोर देते हà¥à¤ à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के मरà¥à¤®, वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को मिटाने की कोशिश करते हैं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे सामूहिक à¤à¤¾à¤µà¤¦à¤¶à¤¾, सामूहिक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ चाहते हैं |
Where There Is Dependency, Attachment, There Is No Love
Psychologically, then, our relationships are based on dependence, and that is why there is fear. The problem is not how not to depend, but just to see the fact that we do depend.
जहाठनिरà¥à¤à¤°à¤¤à¤¾ व आसकà¥à¤¤à¤¿ हों, वहां पà¥à¤°à¥‡à¤® नहीं रह सकता
मनोवैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• तौर पर हमारे संबंध निरà¥à¤à¤°à¤¤à¤¾ पर आधारित रहते हैं और इसीलिठइनमें à¤à¤¯ का वास रहता है | समसà¥à¤¯à¤¾ यह नहीं है कि निरà¥à¤à¤° कैसे न रहें, हमें बस इस तथà¥à¤¯ को देखना है कि हम निरà¥à¤à¤° हैं |
जीवन के बारे में यंतà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦à¥€ मत
जीवन के बारे में यंतà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦à¥€ मत यह है की मनà¥à¤·à¥à¤¯ चूंकि अपने वातावरण तथा विविध पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं का परिणाम मातà¥à¤° है, जो केवल इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· हो सकता है, इसीलिठवातावरण तथा पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤‚ à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¸à¤‚गत पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ होनी चाहिà¤à¤‚ जिसमें वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को केवल बने-बनाठढांचे के à¤à¥€à¤¤à¤° ही कारà¥à¤¯ करने की अनà¥à¤à¥‚ति हो |