Excerpts On God / First and Last Freedom
First and Last Freedom Read | Download
यह सीधी सी बात है |जब मैं अपने आप को एक हिंदू, एक ईसाई, एक बौद्ध कहता हूँ – जो कि पूरी की पूरी परंपरा है, परंपरा का बोझ, ज्ञान का बोझ, सरकारों का बोझ है – तो मैं कुछ देख नहीं सकता हूँ, मैं स्पष्ट और सही तरीके से अवलोकन नहीं कर सकता हूँ | इस प्रकार के मन से मैं जीवन को मात्र एक ईसाई, एक बौद्ध, एक हिंदू, एक राष्ट्रवादी, एक साम्यवादी, अथवा किसी अन्य वाद के अनुगामी की दृष्टि से ही देख पाता हूँ, तथा उस तरह की दृष्टि मुझे अवलोकन करने से रोकती है | यह सीधी सी बात है | अनुभव कोई मापन नहीं हैअनुभव कोई मापन नहीं है, यह सत्य की ओर ले जाने वाला मार्ग भी नहीं है | अनुभव आपको, अपने विश्वासों व संस्कारों के अनुसार होते हैं, और विश्वास का तो अर्थ ही स्वयं से पलायन है | मुझे यदि स्वयं को समझना हो, तो मुझे किसी विश्वास की दरकार नहीं है; मुझे केवल स्पष्टता से, बिना किसी चयन के अपना अवलोकन करना होगा, परस्पर संबंधों मैं, पलायनों में, आसक्तियों में स्वयं का निरीक्षण करना होगा | यदि संभव होयदि संभव हो, तो इस शाम मैं ध्यान के बारे में चर्चा करना चाहूँगा | मैं इस बारे में बात करना चाहूँगा क्योंकि मुझे लगता है कि यह विषय जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है | कमरा उस आशीष से परिपूर्ण हो उठा |कमरा उस आशीष से परिपूर्ण हो उठा | इसके पश्चात जो कुछ घटित हुआ, उसे शब्दों में अभिव्यक्त कर पाना लगभग असंभव है; शब्द कितने निर्जीव होते हैं, उनका सुनिश्चित और तय अर्थ होता है और जो घटित हुआ, वह शब्दों तथा वर्णन की क्षमता से पूर्णतया परे था | यह समस्त सृष्टि का केंद्र था; यह एक पावनकारी गांभीर्य बिजली सा था जो नष्ट कर देती है, जलाकर भस्म कर देती है; इसकी गहनता को मापा जाना संभव न था, यह अचल, अभेद्य था, अविकंप और प्रत्यक्ष किंतु आकाश सा निर्भार | मैं ईश्वर का अनुभव कैसे कर सकता हूँ?प्रश्न: मैं ईश्वर का अनुभव कैसे कर सकता हूँ? इस अनुभव के बिना जीवन का क्या उद्देश्य है? कृष्णमूर्ति: क्या मैं जीवन को सीधे-सीधे समझ सकता हूँ, अथवा मुझे अपने जीवन को अर्थ प्रदान करने के लिए किसी तत्व का अनुभव करना होगा? क्या आप समझ रहे हैं? क्या सौंदर्य की कदरदानी के लिए मुझे उसका उद्देश्य समझना होगा? क्या प्रेम का एक कारण होना चाहिए? शाश्वत का अन्वेषणक्या मन अपनी समस्त अंतर्वस्तुओं को, अपने निषेधों, प्रतिरोधों को, अपनी अनुशासनात्मक गतिविधिओं को, सुरक्षा के लिए किये जा रहे अपने विविध प्रयत्नों को, जो इसकी सोच को संस्कारित और सीमित बना देते हैं – इन सब को समझकर मन एक एकीकृत प्रक्रिया के रूप में शाश्वत का अन्वेषण करने के लिए मुक्त हो सकता है? क्योंकि उस अन्वेषण के बिना, उस यथार्थ अनुभव के अभाव में हमारी सारी समस्याएं और उनके हल हमें और अधिक तबाही की ओर ले जायेंगे | यह एक प्रत्यक्ष तथ्य हैयह एक प्रत्यक्ष तथ्य है कि मानव को उपासना करने के लिए कुछ न कुछ चाहिए | आप और मैं और अन्य अनेक लोग अपने जीवन में कुछ पवित्र, कुछ पावन उपलब्ध कर लेना चाहते है, और हम या तो मंदिरों, मस्जिदों और गिरजों में जाते हैं, अथवा हमारे पास अन्य प्रतीक, प्रतिमाएं अथवा अवधारणाएं होती हैं, जिनकी हम उपासना किया करते हैं |