Excerpts On God / First and Last Freedom
First and Last Freedom Read | Download
मन ज्ञात है|मन ज्ञात है| ज्ञात वह है जिसका अनुभव हम कर चुके हैं | उसी माप से हम अज्ञात को जानने का प्रयास करते हैं| किन्तु यह बात स्पष्ट है की ज्ञात कभी अज्ञात को नहीं जान सकता; यह केवल उसी को जान सकता है जिसका अनुभव इसने किया है, जो इसने सीखा है, संचित किया है | क्या मन अज्ञात को जानने की अपनी असमर्थता के सत्य को देख सकता है? जीवन के बारे में यंत्रवादी मतजीवन के बारे में यंत्रवादी मत यह है की मनुष्य चूंकि अपने वातावरण तथा विविध प्रतिक्रियाओं का परिणाम मात्र है, जो केवल इन्द्रियों द्वारा ही प्रत्यक्ष हो सकता है, इसीलिए वातावरण तथा प्रतिक्रियाएं एक ऐसी बुद्धिसंगत प्रणाली द्वारा नियंत्रित होनी चाहिएं जिसमें व्यक्ति को केवल बने-बनाए ढांचे के भीतर ही कार्य करने की अनुभूति हो | वह जीवन नहीं जो हम जी रहे हैंसंभवत: इस बात का पता लगाने की कोशिश में कुछ समय देना श्रेयस्कर होगा की क्या जीवन की कोई सार्थकता है भी | वह जीवन नहीं जो हम जी रहे हैं, क्योंकि आधुनिक अस्तित्व की सार्थकता तो न के बराबर है | आज संसार में ईश्वर की बहुत सी अवधारणाएं हैं |प्रश्न: आज संसार में ईश्वर की बहुत सी अवधारणाएं हैं | आपका ईश्वर के संबंध में क्या विचार है? कृष्णमूर्ति: सबसे पहले हमें यह पता लगाना चाहिए की अवधारणा से हमारा मतलब क्या है | सोचने की प्रक्रिया से हमारा क्या अभिप्राय है? क्योंकि अंततः हम जब किसी अवधारणा को प्रतिपादित करते है, जैसे ईश्वर को ही लें, तो हमारा यह प्रतिपादन, यह अवधारणा हमारे संस्कारों का ही परिणाम होती है | धार्मिक मन उस मन से पूर्णतः भिन्न है जो धर्म में विश्वास रखता है |धार्मिक मन उस मन से पूर्णतः भिन्न है जो धर्म में विश्वास रखता है | धार्मिक मन समाज की संस्कृति से मनोवैज्ञानिक स्तर पर स्वतंत्र होता है; यह विश्वास के किसी भी रूप, अनुभव या स्व-अभिव्यक्ति की किसी प्रकार की मांग से भी मुक्त होता है और मनुष्य ने, मुझे ऐसा लगता है, युगों-युगों से, विश्वास के द्वारा एक अवधारणा निर्मित की है जिसे ईश्वर कहा जाता है | हमारा मन केवल ज्ञात को जानता है |प्रश्न: हमारा मन केवल ज्ञात को जानता है | हमारे भीतर वह क्या है, जो हमें अज्ञात, यथार्थ की, ईश्वर की खोज में प्रवृत्त करता है? प्रश्न: ईश्वर क्या है?प्रश्न: ईश्वर क्या है? कृष्णमूर्ति: आप कैसे पता लगाएंगे? क्या आप किसी और की जानकारी को स्वीकार कर लेंगे? या आप खुद यह खोज करने की कोशिश करेंगे कि ईश्वर क्या है? प्रश्न पूछना बहुत सरल है, पर सत्य को अनुभूत करना प्रचुर प्रज्ञा, गहन संवाद तथा खोज की अपेक्षा रखता है | |